रवीश कुमारचं जेलरला पत्र
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दिल्ली येथे सुरु असलेल्या शेतकरी आंदोलनात सहभागी झालेल्या शेतकऱ्यांवर वेगवेगळ्या कारणांवरुन गुन्हे दाखल केले जात असताना आता पत्रकारांवर देखील गुन्हे दाखल केले जात आहेत. यावरुन ज्येष्ठ पत्रकार रवीश कुमार यांनी एक पत्र लिहिलं असून पत्रकारांवरील गुन्हे मागे घेण्याची विनंती केली आहे.
सिद्धार्थ वरदराजन, राजदीप सरदेसाई , अमित सिंह यांच्या विरोधात गुन्हे दाखल करण्यात आले आहेत. हे गुन्हे मागे घेण्यात यावेत. तर मनदीप पुनिया या मुक्त पत्रकाराला अटक करण्यात आली आहे. त्यांना सोडून देण्यात यावे. अशी मागणी केली असून देशातील एकंदरित परिस्थितीवरुन सरकारवर निशाणा साधला आहे.
काय म्हटलंय पत्रात...
मनदीप पुनिया की गिरफ़्तारी से आहत हूँ। हाथरस केस में सिद्दीक़ कप्पन का कुछ पता नहीं चल रहा। कानपुर के अमित सिंह पर मामला दर्ज हुआ है। राजदीप सरदेसाई और सिद्धार्थ वरदराजन पर मामला दर्ज हुआ है। क्या भारत में प्रेस की आज़ादी बिल्कुल ख़त्म हो जाएगी ? आज मैंने ट्विटर पर ट्विट किया है। अगस्त 2015 के बाद आज पहली बार ट्विट किया है। वही पत्र यहाँ डाल रहा हूँ ।
जेल की दीवारें आज़ाद आवाज़ों से ऊँची नहीं हो सकती हैं। जो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा लगाना चाहते है वो देश को जेल में बदलना चाहते हैं।
डियर जेलर साहब,
भारत का इतिहास इन काले दिनों की अमानत आपको सौंप रहा है। आज़ाद आवाज़ों और सवाल करने वाले पत्रकारों को रात में 'उनकी' पुलिस उठा ले जाती है। दूर दराज़ के इलाक़ों में FIR कर देती है। इन आवाज़ों को सँभाल कर रखिएगा। अपने बच्चों को व्हाट्स एप चैट में बताइयेगा कि सवाल करने वाला उनकी जेल में रखा गया है। बुरा लग रहा है लेकिन मेरी नौकरी है।जेल भिजवाने वाला कौन है, उसका नाम आपके बच्चे खुद गूगल सर्च कर लेंगे। जो आपके बड़े अफ़सर हैं, IAS और IPS, अपने बच्चों से नज़रें चुराते हुए उन्हें पत्रकार न बनने के लिए कहेंगे। समझाएँगे कि मैं नहीं तो फ़लाँ अंकल तुम्हें जेल में बंद कर देंगे। ऐसा करो तुम ग़ुलाम बनो और जेल से बाहर रहे।
भारत माता देख रही है, गोदी मीडिया के सर पर ताज पहनाया जा रहा है और आज़ाद आवाज़ें जेल भेजी जा रही हैं। डिजिटल मीडिया पर स्वतंत्र पत्रकारों ने अच्छा काम किया है। किसानों ने देखा है कि यू ट्यूब चैनल और फ़ेसबुक लाइव से किसान आंदोलन की ख़बरें गाँव गाँव पहुँची हैं। इन्हें बंद करने के लिए मामूली ग़लतियों और अलग दावों पर FIR किया जा रहा है। आज़ाद आवाज़ की इस जगह पर 'सबसे बड़े जेलर' की निगाहें हैं।
जेलर साहब आप असली जेलर भी नहीं हैं। जेलर तो कोई और है। अगर यही अच्छा है तो इस बजट में प्रधानमंत्री जेल बंदी योजना लाँच हो, मनरेगा से गाँव गाँव जेल बने और बोलने वालों को जेल में डाल दिया जाए। जेल बनाने वाले को भी जेल में डाल दिया जाए। उन जेलों की तरफ़ देखने वाला भी जेल में बंद कर दिया जाए। मुनादी की जाए कि प्रधानमंत्री जेल बंदी योजना लाँच हो गई है। कृपया ख़ामोश रहें।
सवाल करने वाले पत्रकार जेल में रखे जाएँगे तो दो बातें होंगी। जेल से अख़बार निकलेगा और बाहर के अख़बारों में चाटुकार लिखेंगे। विश्व गुरु भारत के लिए यह अच्छी बात नहीं होगी।
मेरी गुज़ारिश है कि सिद्धार्थ वरदराजन, राजदीप सरदेसाई , अमित सिंह सहित सभी पत्रकारों के ख़िलाफ़ मामले वापस लिए जाएँ। मनदीप पुनिया को रिहा किया जाए। FIR का खेल बंद हो।
मेरी एक बात नोट कर पर्स में रख लीजिएगा। जिस दिन जनता यह खेल समझ लेगी उस दिन देश के गाँवों में ट्रैक्टरों, बसों और ट्रकों के पीछे ,हवाई जहाज़ों, बुलेट ट्रेन, मंडियों,मेलों, बाज़ारों और पेशाबघरों की दीवारों पर यह बात लिख देगी।
"ग़ुलाम मीडिया के रहते कोई मुल्क आज़ाद नहीं होता है। गोदी मीडिया से आज़ादी से ही नई आज़ादी आएगी।"
- रवीश कुमार